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गुरुवार, 3 सितंबर 2009

हिन्दी पखवाड़े में आज का व्यक्तित्व " फादर कामिल बुल्के "

हिन्दी पखवाड़े को ध्यान में रखते हुए हिन्दी साहित्य मंच नें 14 सितंबर तक साहित्य से जुड़े हुए लोगों के महान व्यक्तियों के बारे में एक श्रृंखला की शुरूआत की है । जिसमें भारत और विदेश में महान लोगों के जीवन पर एक आलेख प्रस्तुत किया जायेगा । आज की पहली कड़ी में हम " फादर कामिल बुल्के " के बारे में जानकारी दे रहें । उम्मीद है कि आपको हमारा प्रयास पसंद आयेगा ।


भारत वर्ष 1सितंबर से 14 सितंबर तक हिन्दी पखवाड़ा मना रहा है । 14 सितंबर का दिन हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है । सोये हुए हिन्दी प्रेमियों को जगाने का काम करता है हिन्दी दिवस । भारत वर्ष में बहुत से साहित्यकार एवं कवियों ने हिन्दी माध्यम के द्वारा राष्ट्रीय चेतना को प्रज्जवलित किया । हिन्दी से प्रेम भारतीयों तक ही सीमित न रहा , कई विदेशी भी हिन्दी साहित्य और सभ्यता से प्रभावित हुए । ऐसा ही एक नाम है " फादर कामिल बुल्के " । फादर कामिल बुल्के का जन्म 1 सितंबर 1909 बेल्जियम के रम्सकपैले गांव में हुआ । फादर बुल्के ने यूरोप के यूवेन विश्वविद्यालय से सिविल इंजनियरिंग में शिक्षा प्राप्त की । तत्पश्चात 1935 में मुंबई भारत आ गये । फादर बुल्के ने हिंदी , बज्र व अवधी भाषा भी सीखी । 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए किया । 1950 में फादर बुल्के को भारतीय नागरिकता प्रदान हो गयी । फादर बुल्के ने शोध कार्य हेतु रामकथा : उत्पत्ति एवं विकास " विषय चुना । संत जेवियर्स माहविद्यालय में हिन्दी व संस्कृत के विभागाध्यक्ष भी रहे । फादर बुल्के ने 1955 में हिन्दी -अंग्रेजी लघुकोष एवं 1968 में अंग्रेजी- हिन्दी शब्दकोष लिखा । राम कथा : उत्पत्ति और विकास के द्वारा फादर बुल्के ने रामायण में राम कथा का गहन अध्ययन किया । अन्ततः फादर बुल्के राम भक्त हो गये। एक विदेशी होने के बावजूद फादर बुल्के ने हिन्दी की सम्मानवृद्धि , विकास इसके प्रचार-प्रसार और शोध के लिए गहन कार्य कर हिन्दी के उत्थान का जो मार्ग प्रस्तुत किया और हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठा दिलाने की जो कोशिश की वह हम भारतीयों के लिए प्रेरणा के साथ शर्म का विषय भी है , शर्म का विषय क्योंकि एक विदेशी होने के बावजूद हिन्दी के उन्होंने जो किया , हम एक भारतीय और एक हिन्दी भाषी होने के बावजूद उसका कुछ अंश भी नहीं कर पाये । इस शर्म को मिटाने के लिए हमारी ओर से अधिक दृढ़ प्रतिज्ञ और एक निष्ठ होकर कार्य किये जाने की जरूरत है । जो कि वर्तमान में संभव नहीं हो पा रहा है । फादर बुल्के ने 17 अगस्त 1982 को दिल्ली में इस संसार को अलविदा कहा ।

9 comments:

Unknown ने कहा…

फादर बुल्के के बारे में जानकर बहुत ही प्रसन्नता हुई । एक विदेशी नागरिक का हिन्दी साहित्य के प्रति अगाध प्रेम गजब का था । बड़े दुख की बात है कि आज हम हिन्दी को सिरे से नकार रहे हैं । आपकी यह श्रृंखला प्रशंसनीय है । उम्मीद है कि ऐसे ही महान साहित्य से जुडे हुए लोगों के बारे में जानने का मौका मिलेगा ।

शागिर्द - ए - रेख्ता ने कहा…

बहुत अच्छी शुरुआत है | बहुत ख़ुशी हुई यह देखकर की आज कोई हिंदी के अस्तित्व के लिए प्रयासरत है | हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं |
हमारे योग्य कोई सहयोग हो तो बेझिझक कहियेगा |

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Mithilesh dubey ने कहा…

आपके द्वारा किया जाने वाला प्रयास प्रशंसा के योग्य है। फादर बुल्के के बारे मे जानकर बङा अच्छा लगा, साथ ही हमे इनके किए गये कार्यो से सबक भी लेनी चाहिए। हिन्दी साहित्य मचं द्वारा हिन्दी पखवाङा के अवसर पर यह पहल सराहनीय है, इतने ब्लोगर समूह मे हिन्दी साहित्य के प्रति इस तरह की अरुचि दुःखद है।

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

जयकरन जी ऐसे ही आप सबका सहयोग मिलता रहे ।

seema gupta ने कहा…

बेहद सराहनीय प्रयास फादर बुल्के के बारे में पढ़कर अच्छा लगा. आभार इस आलेख के लिए .

regards

Arshia Ali ने कहा…

बुल्के हिन्दी के अनन्य प्रेमी थे।
( Treasurer-S. T. )

kush ने कहा…

फादर कामिल बुल्के एक विदेशी होकर अपनी भाषा को त्याग कर हिन्दी भाषा अपनाया
हम हिन्दुस्तान में रह कर हम दुसरी भाषा उपयोग करते है। यह एक सोचनीय विषय है ।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

आप के इस नेक कार्य की जितनी प्रशंसा की जाय, कम है।

इस श्रृंखला में ग़ैर हिन्दी भाषी भारतीयों के हिन्दी योगदान को उजागर करती रचनाएँ भी प्रेषित करें। ब्लॉग जगत में भी बहुत से दक्षिण, पश्चिम और पूरब के हिन्दी प्रेमी चुपचाप योगदान दे रहे हैं। उनका परिचय भी बाकी लोगों से कराइए।

एक नया कदम होगा।